नशा कुछ और ही होता है, जुदाई के गम को पीने का ।।
वो करते रहें हमसे नफरत, हम तो बेपनाह इश्क करते हैं
पाकर बेवफाई का गम भी, हम नहीं इस जमाने से डरते हैं ।।
उनकी यादों को ही अपना, हमसफ़र बना लिया
हर बहते अपने अश्कों को, पलकों में फनाह किया ।।
वो हमें भुला कर, अपना आशियाना बनाने चले हैं
बर्बाद हमें करके, अपनी दुनिया सजाने चले हैं ।।
हर जख्म मेरा कर रहा है, उनके लिए दुआ
जो मेरा हमसफ़र, होके भी न हुआ ।।
ना शौक था कभी हीरे का, न चाहत है नगीने का