R GOBIND
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Wednesday, January 29, 2014
इस जिंदगी को आजाद करूँ
भुला देने का तो कोई कारण नहीं है
ये मायूसी भी तो अकारण नहीं है ॥
आज फिर वीरानियों में खो रहे हैं
अश्क़ हैं कि बहते नहीं, बस दिल ही दिल में रो रहे हैं ॥
अब और कैसे अपनी बर्बादियों में आबाद रहूँ
मौत नसीब हो जाए तो इस जिंदगी को आजाद करूँ ||
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