मेरी कम्पनी की उदारता इस साल की, पार्टी दी भी तो शराब की
ऐसी ना कोई गुजारिश थी, पर हर किसी की यही ख्वाहिश थी ।।
कोई सीमा ना थी पीने की, ये पल थे बेफिक्र जीने की
देखा था हर एक शख्स को मैंने, खुद से ही जो बेखबर थे ।।
झूम रहा था हर कोई ऐसे, मिल गयी हो कोई मंजिल जैसे
ना रुकते थे ना थकते थे
किस धुन में ऐसे मगन थे वो, पीने चले थे पूरी लगन से जो ।।
इस महफ़िल में वो खुश थे पर, खुशियों की ना मुझे कोई लहर दिखी
उनके अंदाज़े बयाँ पे, ज़ाम शराब की महर दिखी ।।
कितने पीकर मदमस्त हुए, कुछ पीते पीते पस्त हुए
कुछ पीकर रह ना पाए खड़े, कुछ दिखने लगे उदास बड़े ।।
वो चौंक गये ये जानकर, की पीना छोड़ अब खाने पे एहसान कर
सुना कितनो को ये कहते हुए
की अभी अभी था मूड बना, और बनते ही कर दिया फ़नाह ।।
शायद हसरत ना उनकी हुई पूरी थी, पर अब खाना तो मजबूरी थी
आपस में ही ये कहने लगे, ये शायद एक बहलाव थी
जब तक हमने पी, पार्टी तब तक ही लाज़वाब थी ।।
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