R GOBIND
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Tuesday, September 20, 2011
वो उलझन हमे तो बताओ
मंजिल तुम्हारी मुट्ठी में होगी
उसकी डगर में कदम तो बढाओ
जमी ही नहीं होगा आसमा भी तुम्हारा
मोहब्बत से एक बार जो तुम मुस्कुराओ
पिघल जायेगा वो खुदा भी
दुआ के लिए दोनों हाथ उठाओ
ना रहेगी कोई परेशानी
दिल की वो उलझन हमें तो बताओ
Saturday, September 10, 2011
मंजिल खुद गले लग जाएगी
एक बार की असफलता मेरा निश्चय नहीं डिगाएगी
मेहनत इतना करूँगा की मंजिल खुद गले लग जाएगी
निराशा का अँधेरा दूर होगा मेरे आक्रोश की ऐसी रौशनी आएगी
बे-बस हो कर हर हसरतें मेरे आगोश में समा जाएगी
मेहनत इतना करूँगा की मंजिल खुद गले लग जाएगी
Sunday, September 4, 2011
आँखें नम रखते हैं
भीड़ में भी तनहा हम रहते हैं
अपने ही आशियानें में बे-पनाह हम रहते हैं
हमारे गम से मिलता है उन्हें सुकून
तभी तो आँखें अपनी सदा नम रखते हैं
तो क्या
मैंने दिल से जिसे है चाहा, वो चाहे ना मुझे तो क्या
मेरी हर धड़कन में नाम उसका, वो भुला दे मुझे तो क्या
मेरी आत्मा में वो है
तन से मिली नहीं तो क्या
उसकी एक मिलन की याद से
सारी जिंदगी गूजार दूं
फिर हर मोड़ पर भले ही
वो ले नजरें चुरा तो क्या
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