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Sunday, September 4, 2011

आँखें नम रखते हैं


भीड़ में भी तनहा हम रहते हैं
अपने ही आशियानें में बे-पनाह हम रहते हैं

हमारे गम से मिलता है उन्हें सुकून 
तभी तो आँखें अपनी सदा नम रखते हैं

       

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