R GOBIND
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Tuesday, September 20, 2011
वो उलझन हमे तो बताओ
मंजिल तुम्हारी मुट्ठी में होगी
उसकी डगर में कदम तो बढाओ
जमी ही नहीं होगा आसमा भी तुम्हारा
मोहब्बत से एक बार जो तुम मुस्कुराओ
पिघल जायेगा वो खुदा भी
दुआ के लिए दोनों हाथ उठाओ
ना रहेगी कोई परेशानी
दिल की वो उलझन हमें तो बताओ
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